किसी मुसलमान के लिए उचित नहीं है कि उसके पास कोई वस्तु हो, जिसकी वह वसीयत करना चाहता हो और वह वसीयतनामा लिखे बिना दो रात भी गुज़ारे। इमान मुस्लिम ने यह इज़ाफ़ा किया है कि इब्ने उमर -रज़ियल्लाहु अन्हुमा- ने फ़रमाया : "जबसे मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को यह फ़रमाते हुए सना है, मेरी कोई रात्रि वसीयतनामा लिखे बिना व्यतीत नहीं हुई।
«ما حق امرئ مسلم له شيء يوصي فيه؛ يبيت ليلتين إلا ووصيته مكتوبة عنده». [صحيح.] - [متفق عليه.]